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Vichar unnayan
क्या मैं प्यार के काबिल हूँ?\n\nसवाल यह नहीं है कहीं तुम एक दरवाजा खोलना भूल गये हो, कोई द्वार हैं ही नहीं, न कोई दीवारें हैं। यह अयोग्यता का ख्याल बस एक अवधारणा, एक विचार है। तुम विचार से सम्मोहित हो गए हो।
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गुजारी हुई ज़िन्दगी कभी याद न करना….\nतकदीर में जो लिखा है उसकी फ़रियाद न करना….\nहोना है जो होकर रहेगा…\nकल की फिकर में….\nआज की हसी बर्बाद न करना…!!
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इस तरह आप हर बार गलत कामों से बच सकते हैं….\n\nजब भी हम कोई गलत काम कर रहे होते हैं, हमारे भीतर कुछ ऐसा होता है, जो एक बार हमें जरूर टोकता है। जब तमो गुण हावी होते हैं, पाप प्रिय लगने लगता है, आचरण में पशुता उतरती है तो भीतर भी हलचल होती है।\n\nगलत में एक आकर्षण होता है और सही में सहज आमंत्रण। हृदय पुकारता है और मन खींचता है।
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भावनात्मक स्पर्श भी अकेलापन मिटाने का एक तरीका है…\n\nभावनात्मक रूप से अकेलापन मिटाने में मन केवल विचार और जानकारियां भीतर भरता है और बाहर उगलता है। मन से हटकर जब हृदय से जुड़ जाएं तो अकेलेपन में हृदय कुछ अधिक पवित्र होता है, ठीक बदलाव लाता है। मन को विचारों से खाली कर दीजिए।\n\nखाली मन अपने आप खिसककर हृदय के पास चला जाता है और हृदय से फिर पूरे शरीर में भावनाओं का संचार होता है और ऐसा संचार अकेलेपन को आनंद में बदल देता है। यह क्रिया है तो गहरी, पर करने पर परिणाम बड़े शुभ देती है।
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ऐसा सोचेंगे तो हर काम मुश्किल हो जाएगा…\n\nजीवन में कई काम दूसरों के सहयोग से ही पूरे होते हैं। मनुष्य यह सोच ले कि सबकुछ मैं ही कर लूंगा तो मुश्किल है। लेकिन जैसे ही जीवन में दूसरे का प्रवेश होता है, हलचल भी शुरू हो जाती है। आदमी की अपनी सत्ता बड़ी निरंकुश होती है।\n\nदूसरा कितना सहयोग देगा या असहयोग करेगा इससे कभी-कभी भूचाल आ जाता है। लेकिन बिना उसके काम भी नहीं चलता। फकीरों ने एक शब्द कहा है खुमारी। इसका अर्थ होता है एक ऐसी स्थिति जहां आप होश में भी हैं और बेहोश भी, जहां दु:ख भी है और सुख भी, आंसू भी हैं और मुस्कान भी। कोशिश करें कि भावनात्मक रूप से दूसरों पर आश्रित न रहें।
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